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________________ • २७३ । पत्र पत्रिकायें द्विवेदी-युग के पूर्व, उन्नीसवी ई. शती के उत्तरार्द्ध में केवल दो ही दैनिक पत्र निकल सके थे 'सुधावर्षण' (१८५४ ई०) और 'भारतमित्र' (१८५७ ई.) दोनो ही अकाल काल-कवलित हो गए। १६११ ई० में दिल्ली-दरवार के अवसर पर 'भारतमित्र देनिक कप में पुनः प्रकाशित हुश्रा किन्तु जनवरी १६१२ ई० में बन्द हो गया । मार्च, १६१२ ई. से दैनिक रूप में वह फिर निकला और २२ वर्ष तक चलता रहा। १९१४ ई० में कुछ मारवाडी सजनों ने कलकत्ता समाचार' निकाता। कुछ ही वर्ष बाद उसका अन्त हो गया। उन्हीं दिन! 'बैंकटेश्वर ममाचार' भी कुछ काल तक दैनिक रूप में प्रकाशित हुआ था। १६१७ ई० म अम्बिकादत्त बाजपेयी के मम्पादकन्व के मूलचन्द अग्रवाल ने दैनिक 'विश्वमित्र निकाला। बाजपेयी जी ने कलकत्ते से कुछ काल तक स्वतंत्र' भी निकाला। उपर्युक्त पत्रो ने ममाचार तो अवश्य दिए परन्तु निश्चित विचारों का उल्लेखनीय प्रचार नही किया ! १६२८ ई० में काशी मे 'आज' प्रकाशित हुया ! उमका विशेष लक्ष्य था भारत के गौरव की वृद्धि और उमकी राजनैतिक उन्नति ।' उसने राष्ट्रीय विचारों का प्रचार क्यिा : देश-विदेश के समाचारों के अतिरिक्त भम्पादकीय अग्रलेखो और लेग्वको की रचनाश्रो के द्वारा उमन मनोरंजक और उपयोगी मामग्री पाठको को भेट की: भाषा, भाव और शेल्दी मभी दृष्टियों में उसने हिन्दी-समाचारपत्र-जगत मे युगान्तर उपस्थित किया बीसवी ईसवीं शती के प्रारम्भ में 'भारत मित्र', 'वगवामी', 'बैंकटेश्वर-ममाचार आदि उल्लेग्यनीय माताहिक पत्र थे ! लग्वन के श्रानन्द' (लगभग १६.५ ई० 1 और 'अवधवामी' (१९१४ ई.) का जोबन मृत्यु-सा ही था ! १६०७ ई० में पं० मदनमोहन मालवीय के संरक्षण और पुरुषोत्तमदास टंडन के सम्पादकत्व मे 'अभ्युदय प्रकाशित हुआ । माधवराव सप्रे ने नागपुर से हिन्दी-केमरी' निकाला परन्तु वह कुछ ही दिन चल सका ! १६० ई0 में सुन्दरलाल के सम्पादकीय में 'कर्मयोगी' निकला और कुछ समय बाद पाक्षिक में साप्ताहिक होकर १६१०ई० में बन्द हो गया । १६११-१२ ई. में कानपुर से गणेशशंकर विद्यार्थी ने १ "हमारा उद्देश्य देश के लिए सर्व प्रकार ले स्वातन्त्र्य उपार्जन है! हम हर बात मे स्वतंत्र होना चाहते है। हमारा लक्ष्य यह है कि हम अपने देश का गौरव बढाय अपने देशवासियों में स्वाभिमान का संचार करें, उनको ऐसा बनार्वे कि भारतीय होने का उन्हें अभिमान हो, संकोच न हो : यह स्वाभिमान स्वतंत्रता देवी की उपासना कम्न म मिलना है। चाज सार २८ १५. विक्रमी रजत पती अक पृष्ट १०
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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