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________________ रन्नाकर-कार्यालय, पम्पष्ट श्रादि ने हिन्दी-ग्रयां, विशेष कर उपन्यासा, का प्रकाशन करके हिन्दी का प्रचार और प्रसार किया। आर्यममाजियों, मनातन-धर्मियो, ईसाइया श्रादि ने अपने धर्म प्रचार के लिये हिन्दी को ही माध्यम बनाकर उसके व्यवहार की वृद्धि की। १९१० ई. में बड़ौदानरश ने बरनाक्यूलर स्कूलों की पाँचवीं और छठवी कक्षामा के लिए, हिन्दी अनिवार्य कर दी और हिन्दी-पुस्तको के प्रकाशन की भी व्यवस्था की ।' मन १६१५ में युक्तप्रान्त के शिक्षा विभाग ने पाठवीं कक्षा तक हिन्दी का माध्यम म्वीकार किया। उस समय कांगडी के गुरुकुल, ज्वालापुर के महाविद्यालय, हरिद्वार के ऋषिकुल, वृन्दाबन के गुरुकुल तथा प्रेम-महाविद्यालय श्रादि संस्थाएँ हिन्दी-माध्यम द्वारा ही शिक्षा देती थीं ! द्विवेदी-युग के उत्तरार्द्ध में हिन्दी को शिक्षा का माध्यम बनाने और विश्व-विद्यालया में हिन्दी माहित्य को पाठ्य विषय निर्धारित करने के लिए विशेष आन्दोलन हुना। भ० १६७६ में कलकत्ता विश्व-विद्यालय और सन १९२० ई० में काशी विश्वविद्यालय ने हिन्दी साहित्य को अन्य विषयों के ममकक्ष ही पाठ्यक्रम में स्थान दिया। अफ्रीका में श्री वा. मदनजात, मोहनदाम कर्मचन्द गाधी, भवानी दयाल मन्याभी आदि ने हिन्दी-प्रचार किया। मन्यामी जी ने अफ्रीका के विभिन्न स्थानों में हिन्दी-सस्थाएँ बोलीक्लेर स्टेट (नेटाल) में हिन्दी-श्राश्रम', 'हिन्दी-विद्यालय', 'हिन्दी-पुस्तकालय', 'हिन्दीयन्त्रालय और ' हिन्दी प्रचारिणो ममा', जमिस्टन में हिन्दी नाइट स्कूल', 'हिन्दी फुटबाल ऋत्नब' पोर हिन्दी बालसभा',डेन हाउसर में हिन्दी प्रचारिणी मभा' और 'हिन्दी पाठशाला' एवं प्रिटोरिया में हिन्दी पाठशाला' आदि । २ टान्सवाल में सिडनटम स्थान में हिन्दा जिज्ञाम्य ममा नेशनल मोसाइटी' की स्थापना हुई । मं० १६७५ मे रंगून में हिन्दी पुस्तकालय बुला ।४ दिसम्बर, १६१६ ई० में अफ्रीका में प्रथम हिन्दी माहित्य सम्मेलन हुअा। निवदी-मम्पादित 'सरस्वती' स्वयं एक प्राप्त विश्व-विद्यालय बन गई थी। उसनं भारत छ, मोतर और बाहर कितने ही अर्द्ध-शिक्षिता और अल्पज्ञों को शिक्षित, बहुज्ञ, लेखक तथा कवि बनने के लिए प्रेरित किया । मम्पादक द्विवेदी ने संसार के विभिन्न प्रदेशो में सरस्वती भक्तो की मष्टि की: इस प्रकार द्विवेदी-युग मे देश और विदेश में हिन्दी की प्रतिष्ठा हुई। 1. प्रथम हिन्दी-साहित्य सम्मेलन का कार्य-विवरण । २ साहित्य सम्मेलन पत्रिका', मग ३, अंक ३ । ३ 'इंदु', कला चार, खंड १, पृ० १६६ { ४ सम्मेवान पत्रिका भाग ३, अक २ ३ १० ८० 2 'सामान पत्रिका भाग ४ ५ पृ २०५
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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