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________________ विवश हाकर सहारात्मक आलोचना करनी पडी है व कहते हैं- "हम यह जानते हैं कि किस कृति में दोष दिपलाना बुरा है परन्तु जिसम सबस धारण को हानि पहचती हो ऐसे दोष को प्रकाश करके उनको दूर करने की चेष्टा करना बुरा नहीं है । इस प्रकार का दोषाविष्करण यदि लाभदायक न होता तो हमारी न्यायशीला गवर्नमेंट पुस्तको और राजकीय कार्यों की समालोचना की अपराधों की तालिका में गणना करके उसके लिए भी पेनलकोड मे दड निर्धारित करती है फिर जिम लेखक के दोप दिखलाए जाते है, वह यदि शान्तचित्त होकर विचार करे तो समालोचना से उमका भी लाभ ही होता है, हानि नहीं होती । ऐसे अनेक लोग है जो अपनी विद्या, अपनी बुद्धि और अपनी योग्यता का पूरा पूरा विचार किए बिना ही पुस्तके लिखकर ग्रन्थकार बनने का गर्व हाँक्न हैं। अपने दोप अपने ही नेत्रों से उनको नहीं देख पडतं । उन्हीं को क्या मनुष्यमात्र को अपने दोप प्रायः नहीं दिखाई देते । अतएव उनके दोष उनका दिग्वलाने के लिए दृमर ही की अपेक्षा होती है ।"१ द्विवेदी जी का महान् अालोचक ठोम अालोचनान्मक ग्रन्थों का प्रणयन न कर सका। वह भाषासुधार, मन्त्रिपरिष्कार और लेविकनिर्माण तक ही मीमित रह गया । उसने जानबूझकर इन मकुचित सीमाओं को स्वीकार किया-युग की मागो को पूरा करने के लिए। 'सरस्वती' उनकी इन आलोचनाओ का वाहन बनी। उसमें प्रकाशित सभी ग्रालोचनात्मक लेखो की समीक्षा करना यहां कठिन है। 'समालोचना-समुच्चय', 'विचारविमर्श' और ‘रसज्ञरजन' मे संकलित लेग्वा की संक्षिप्त अालोचना अवश्य अपेक्षित है । पहली पुस्तक को हम अाधुनिक अर्थ में समालोचना का समुच्चय नहीं कह मकने । मामयिक पुस्तको की परीक्षारूप में लिखे गए ये निबन्ध हिन्दी-साहित्य की स्थायी सम्पत्ति नहीं है । परन्तु यह भी स्मरण रखने की बात है कि स्थायित्व और अमर यश ही अालोचना का एकान्त उद्देश नहीं है, साहित्यसर्जन भी कोई वस्तु है । इन आलोचनायो का महत्व लेखको और कविया के उचित पथप्रदर्शन में है । द्विवेदी जी की पुस्तक-समालोचना की पद्धति इस पुस्तक के अन्तिम निबन्ध “हिन्दी-नवरत्न' मे अपने सुन्दरतमरूप मे प्रकट हुई है। इसका अनुमान उसकी विषयसूची में ही हो जाता है । मूलग्रन्थ मे प्रायः ६४ उद्धरण देकर उसकी दोषप्रधान विस्तत और अकाट्य समालोचना की गई है। अालाचक ने दोपा के परिष्कार १. 'हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना', पृ. २६ २. उसकी विषय सूची इस प्रकार है पुस्तकसम्बन्धिनी साधारण बाते, लेखकों का विचार स्वातल्य, पुस्तक की उपादेयता, काल्पनिक चित्र कवियों का श्रेणीविभाग, तुलसीदास मतिराम टेव बिहारीलाल, हरिश्चन भावानोष गटदोप फुटकर रोष
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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