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________________ श्रदम्यता के साथ पदन्यास किया है उसकी - और साहित्य में सुधार के लिए म आद्योपान्त ही तर्क, चिन्तन, और संयम से काम लिया गया है । इतिहासलेखक को जब जब बीसवी शती ई. के प्रथम चरण के हिन्दी साहित्य को देखने और समझने की श्रावश्यकता होगी तब तब विवेदी जी का यह 'ममालोचनासमुच्चय' स्थायी साहित्य की निधि न होने पर भी अनुपेक्षणीय होगा | 'विचारविमर्श' में 'याधुनिक कविता', 'पुरानी समालोचना का एक नमृना', 'हिन्दी के समाचारपत्र', ‘बोलचाल की हिन्दी मे कविता', 'सम्पादकी, समालोचको और लेखकों का कर्तव्य', 'ठाकुर गोपाल शरण सिंह की कविता, भारतभारती का प्रकाशन' श्रादि कुछ ही निबन्ध आलोचनात्मक है । ये भी सामयिकता और पुस्तक परिचय की सीमानों से बंधे हुए है । आलोचना और मनोरंजक्ता के सुन्दर समन्वय के कारण प्रसज्ञरंजन' की विशेषता ही निगली हे उसके मज पाठकों की दो कोटियाँ सो कर दी गई है। पहली कोटि में रसज्ञ कवि हैं जिनको लक्ष्य करके प्रथम पाच लेख लिखे गए है और दूसरी कोटि में रसज्ञ कविताप्रमा है जिनके मनोरंजनार्थ अन्तिम चार निबन्धों की रचना हुई है । संस्कृत से अनुप्राति युगनिर्माता द्विवेदी का स्वर सर्वव्यापक है । मैथिलीशरण गुप्त के 'साकेत' को जन्म देने का मुख्य श्रेय इस संग्रह के कवियों की उर्मिलाविषयक उदासीनता" निबन्ध को ही है । आलोक द्विवेदी का सच्चा स्वरूप उनकी कृतियों के कतिपय ग्रहों में नहीं है, वह उस युग के साहित्य के साथ एक हो गया है। उन्होंने आलोचना को तप के रूप में स्वीकार किया | उनकी संहारात्मक समीक्षाओ ने लेखकों को सावधान करके, मापा को मुव्यवस्थित करके हिन्दी साहित्य की ईदृक्ता और इयत्ता का उन्नत करने की भूमिका प्रस्तुत की, माहित्यिक जगत् में जागृति उत्पन्न की जिसके फलस्वरूप श्रागे चलकर भननीय ठोस ग्रन्थों की रचना हो सकी। उनकी सर्जनात्मक सकर्मक थालोचनाश्री ने मैथिलीशरण गुप्त, रामचन्द्र शुक्ल यादि साहित्यकारों का निर्माण किया जिनके यश: सौरभ में हिन्दी- संसार सुवासित है। उन्होंने हिन्दी साहित्य में आधुनिक आलोचना की पति चलाई। आलोचक द्विवेदी युग का निर्माण करने के लिए सम्पादक बने, भापामुवारक बने, गुरु और श्राचार्य बने । अपनी इन्ही विशेषताओं के कारण वे अपने समसामयिक बालोचको -- पद्म सिंह शर्मा, मिश्रबन्धु श्रादि -- अत्यधिक महान् है । मन्त्र तो यह है कि द्विवेदीजी जैसा-युगनिर्माता थालोचक हिन्दी साहित्य में कोई नहीं हुआ । १ १ यह निचव रवीनाथ ठाकुर के 'काय में उपेचिता" नामक निबन्ध पर आधारित है रसनरजन का भूमिका
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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