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________________ धर्म में सुधार सुधारक आपका आमरण स्वीकार करके मैं यहीं ग्राया, इसमें एक उद्देश्य यह था कि इस निमित्त मे एकाध दिन परमानन्द भाई के साथ रहने का आनन्द मिलेगा। अभी-अभी उनके श्रहमदाबाद के भाषण के विरुद्ध एक बडा जगडा खडा हुया है । मुझे बार-बार श्राश्चर्य होता है कि परमानन्द भाई के समान सौम्य प्रोर सतुलित व्यक्ति के भाषण मे लोगो को ऐसा क्या मिल गया कि वे उन्हें मार्टिन ल्यूथर बनाने के लिए तैयार हो गये है। तीव्र विचार रखने वाले प्रत्येक मित्र को वस्तु का दूसरा पहनू बताकर उमे सौम्य और जिम्मे - दार बनाना ही ग्राज तक परमानन्द भाई का प्रिय कार्य रहा है । उनका पूरा भाषण पढ़े विना ही में कह सकता हूँ कि उसमे उत्पात मचाने वाला अथवा विनाशक कोई तत्त्व नही है । उसका ग्रथ उतना ही है कि नातिकारी या सुधारक युग परमानन्द भाई के समान मौम्य मूर्ति के द्वारा भी अपनी आवाज प्रकट कर मकता है । मैं सुनता हूँ कि अमुक समाज ने श्रथवा समुदाय ने उनका बहिष्कार कर दिया है । उसलिये में पहले इम वहिष्कार के बारे मे ही दो शब्द कहूँगा । वहिष्कार प्रत्येक मुगस्कृत और मगठिन समाज का स्वाभाविक अधिकार है । वह मभ्य समाज के हाथ मे एक प्रभावशाली और मात्त्विक श है | लेकिन यह शम्य दुधारी तलवार है। जिनके खिलाफ इसका उपयोग किया जाता है उन्हें तो जब यह मारेगा तब मारेगा, परन्तु जो लोग इस शम्न का उपयोग करते हैं वे यदि उचित श्रवमर, उचित पद्धति और स्वाभाविक मर्यादा को न जानें, तो यह पहले उन्ही का नाश करना है । एक ममय हमारी जाति के एक सथाने वृद्ध पुरुष ने वहिष्कार की जो मीमामा की थी उमे इस समय में अपनी भाषा मे ग्रापको मुना दूँ । सत्याग्रहाश्रम मे जाकर मैंने हरिजन के हाथ का खाना खाया था । इसलिये जब मै अपने गाँव गया तो मैंने अपने जाति वालो से हूँ । गुजरात के जैसी जातियो की रचना वाली परेशानी हमारे प्रदेश मे बिलकुल कहा कि मैं इस तरह व्यवहार करता और जातियो द्वारा खडी की जाने नही है । फिर भी जाति के लोग
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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