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________________ परम्परा किसे कहें ? 'परम्परा निभाये' इसका मतलव क्या ? पुराना सव जैसा का वैसा ही सम्भालकर रखना, उसमे कुछ भी परिवर्तन न होने देना, यही उमका अर्थ है ? हरगिज नहीं। पर यानी पीछे से आने वाला। परम्परा का अर्थ है एक स्थिति छोडकर उसके जैसी दूसरी स्थिति को लेना, आगे चलकर उस दूसरी स्थिति को भी छोडकर उसके साथ मेल खाये ऐमी या उसमे से पैदा होने वाली तीसरी कालानुकूल स्थिति को अपनाना। इसे कहते है परम्परा निभाना । हम मकान मे नीचनी मजिल से ऊपर की मजिल को जाते है तो कूदकर या उडकर नहीं जाते, जीना या सीडी चढकर जाते है । यानि जमीन पर से पहली सीढी पर, पहली सीढी से दूसरी मीढी पर, यो मीढियो के क्रम से ऊपर जाते है। नीचे उतरने के लिये भी कूदते नहीं है, क्रम से उतरते है। सामाजिक जीवन मे ऐसा ही क्रम रहता है। समाज चढे या गिरे, उसकी गति, प्रगति या परागति क्रमश होती है । इसलिये मनुष्य परम्परा निभाकर उन्नति भी पा सकता है और अवनति भी। परम्परा की खूवी दो वस्तुप्रो पर या तत्त्वो पर निर्भर है(1) नित्य परिवर्तन करते हुये भी, (2) पुरानी परिस्थिति या पुराने तत्त्वो से सम्बन्ध या अनुवन्ध न छोडना । दूसरे शब्दो मे कहे तो परिवर्तनशीलता यह एक खूबी और सम्बन्ध अविच्छिन्न रखना यह दूसरी सूवी । ऐसी परम्परा ही प्रगति का उत्तम व्याकरण है । From precedent to precedent daily self surpasses---यह है सूत्र परम्परावाद का। _ 'पुराना छोडना नही और नया लेना नहीं', यह कोई परम्परावाद का सूत्र नही है, यह तो अपरिवर्तनवाद का है । जिन्दा शरीर बढता है, मुर्दा सडता है, दोनो मे से एक भी अपरिवर्तनवादी नही है । परम्पग की खूबी यही है कि उसमे परिवर्तन क्रमश होता है। सिर्फ कान्ति मे नम की बात नहीं है। कोई पुत्र जब पिता की कोठी मम्भालता है तो पिता की पूजी पर साँप की तरह बैठे नहीं रहता। उस पूंजी का उपयोग कर के उमे बढाता है और नये-नये क्षेत्रो मे काम करता है । मिर्फ फर्म का नाम कायम रग्रकर
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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