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________________ नया आध्यात्मिक समाजशास्त्र हमारी कहाँ भूल हुई, उसकी चर्चा हम डेढ सौ साल से करते आये हैं । परस्पर विरोधी उपपत्तियाँ और मीमासा हम सुनते है । लेकिन आज भी नई परिस्थिति के नये प्रादर्शो की नई जीवन-सिद्धि का नया व्याकरण हमने अब तक हस्तगत नही किया है, हृदयगम नही किया है । 101 दुनियाँ को भिन्न-भिन्न महाजातियों और समाजो के इतिहास की छानवीन करके अर्थ शास्त्र, मानव शास्त्र, धर्म शास्त्र, राजनीति, संस्कृतियो का विकास आदि तत्त्वो का अध्ययन करके उसमे से हमे अपना समाजशास्त्र बनाना होगा । पदार्थ विज्ञान, रसायन, वनस्पति-शास्त्र, खनिज विद्या, प्राणी विद्या आदि भौतिक-शास्त्रो का अवलोकन करके उसमे जो कुछ बोध मिलेगा, जो कुछ सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त होगी उस सब का लाभ उठाकर अपनी पूर्व परम्परा की बुनियाद पर अध्यात्म-शास्त्र के नियन्त्रण के नीचे हमे अपना नया प्राध्यात्मिक समाजशास्त्र तैयार करना होगा और तदनुरूप जीवन कला का विकास करना होगा। यह सब करने का समय कब का आा चुका है । यह सब कौन कब करेगा ? ८ जुलाई १९५८
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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