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________________ ५४] महावीर का अतस्तल ~ ~ . का बोझ यह उठा भी सकेगी ? एक छोटा सा वन क्यों नहीं . देदेते की इसे आप अच्छा सा वर ढूंद देंगे। . मैं- इप्लके लिये वचन देने की क्या जरूरत है यह तो आवश्यक, कर्तव्य है जो उसका पिता न कर पायगा तो साता करेगी। देवी-माता क्यों करेगी ? पिता का कर्तव्य पिता ही को करना पड़ेगा ! सन्तान के प्रति नारी का दायित्व जितना है नर का दायित्व उससे कम नहीं है। मैं- नर तो निमित्तमात्र है, सारी साधना नारी की है। साधारण प्राणिजगत में सन्तान ने पिता को कर पहिचाना? माता ही वहां सन्तान के लिये सब कुछ है। . देवी- पर मनुष्य तो साधारण प्राणिजगत के समान नहीं है। मैं-नहीं है। फिर भी यहां लोकोक्ति प्रचलित है कि सौ पिता के बराबर एक माता होती है । यह अतथ्य नहीं है । नारी का जो यह शतगुणा मूल्य है उसका कारण सन्तान के प्रति . असकी शतगुणी साधना ही तो है। देवी- पर इसका मतलब तो यही है कि प्रकृति ने अन्य जाति की मादाओं पर साधना का जो बोझ डाला है वह मानवी नारी पर भी डाला है। इस दृष्टि से मानवी का भी माता के रूप में सौ गुणा मूल्य है, पर प्रकृति-प्रदत्त इस साधना से तो सिर्फ प्राणी का निर्माण होपाता है, मानव का नहीं । मानव का निर्माण तो तभी होता है, जब नारी की साधना में नर भी कन्धा से कन्धा भिड़ाकर बढ़ता चलता है। पशु के बच्चे की अपेक्षा मनुष्य के बच्चे का जो असंख्य गुणा विकास होता है, उसमें नारी की साधना की अपेक्षा नर की साधना का ही विशेष अंश है। ...
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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