SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५५ - मैं बहुत ठीक कहा तुमने । उसी विशेष अंश को पूरा करने के लिये ही तो मुझे निष्क्रमण करना है । आज मनुष्य के बच्चे का विकास रुकगया' है अथवा वह पशुता या दानवता की ओर मुड़ पड़ा है, नारी अपनी साधना का काम पूरा कर रही है पर नर अपनी साधना के काम में पिछड़ गया है, उसे अपना काम पूरा करने के लिये काफी तपस्या करना है । महावीर का अन्तस्तल निष्क्रमण की बात सुनकर देवी का मुखमण्डल फीका पड़गया। बड़ी कठिनाई से सुनने धीरज सम्हालते हुए कहाअगर नर की साधना का काम चाकी पड़ा है और नारी अपनी साधना का काम पूरा कर रही है तो नारी का यह कतव्य होजाता है कि नर की साधना मैं हाथ चटाये । -- - मैं- अवश्य ! इसीलिये तो मैंने प्रियदर्शना को जगदुद्धारिणी होने का आशीर्वाद दिया था । फिर भी साधारणतः इस बात का तो ध्यान रखना ही पड़ेगा कि नारी अपनी साधना का काम पूरा करके ही नर की साधना में हाथ बटा सकती है । विशेषतः वह अपनी साधना अधूरी तो नहीं छोड़ सकती । उसकी साधना अधूरी रही तो नर की साधना का काम भी रुक जायगा । नारी अगर कपड़ा न चुनेगी तो नर रंगेगा किसे ? S देवी - इसका तो मतलब यह हुआ कि मानवता की विशेष साधना का अवसर नारी को कभी मिल ही नहीं सकता । मैं- हां ! आजकल कठिनता से मिलता है, पर मैं चाहता हूँ कि मानवता की विशेष साधना का अवसर नारी को भी मिले। ऋपित्व, मुनित्व, तीर्थंकरत्व और मुक्ति नर की ही बपौतीन रहे । वास्तव में नर नारी का अधिकार समान है और मौलिक योग्यता . में भी कोई अन्तर नहीं हैं । पर विशेष साधना का काम नारी तभी
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy