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________________ महावी का अन्तस्तल [५३ भीड़ को हटाकर देवी को राजमन्दिर में लाया गया। वहां शीतलोपचार करने पर उन्हें होश आगया । होश आते ही उनकी नजर मुझपर पड़ी और ३ मुझसे लिपटकर फूटफूटकर रोने लगी। यह अच्छा हुआ, उनकी जीवनरक्षा के लिये इस प्रकार रोना जरूरी था । अन्यथा दबी हुई वेदना आंखों के द्वार से न निकलती, हृदयं का विस्फोट कर निकलती । दवी के आंसुओं से मैं अपना उत्तरीय पवित्र करता रहा। . ९- नारी की साधना - ___ ५धनी ६४२६ इ. संवत्. करीव एक वर्ष से निष्क्रमण का नाम भी मैं मुंहपर नहीं लाया हूं । गतवर्ष रामलीला में जब देवी मूञ्छित हुई, तव से यही ठीक समझा कि निष्क्रमण से सम्बन्ध रखनेवाली कोई भी बात न निकले, फिर भी देवी निश्चित नहीं है। हां! प्रसनता प्रदर्शन करने की पूरी चेष्टा करती रहती है, पर आज देवी के कारण ही कुछ चर्चा छिड़पड़ी। . प्रियदर्शना अब काफी होश्यार हागई है । वह छः वर्ष की होचुकी है, उसका आज सातवां जन्मदिन था । इसलिये आज उस विशेष रूप में नये कपड़े पहिनाये गये थे, भोजन भी कुछ विशेष बनाया गया था। एक छोटा सा घरू अत्सव मनाया गया था। भोजनोपरान्त देवी प्रियदर्शना को लेकर मेरे कक्ष म आई और मुझे लक्ष्य कर प्रियदर्शना से कहा-अपने पिता जी को प्रणाम कर बेटी ! और वर मांग कि तेरा संसार सुखमय बने । - मैंने कहा-इसका संसार ही क्या सब का संसार सुखमयं बने इसलिये आशीर्वाद देता हूं कि यह जगदुद्धारिणी बने । देवीन हसते हुए कहा-पर इतने लम्बे चौड़ें आशोर्वाद
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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