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________________ ३१०] महावीर का अन्तस्तल ~van... ___ गौतम के द्वारा मेरा सन्देश पाकर महाशतक ने प्रायश्चित किया । और इस बात के प्रति कृतज्ञता प्रगट की कि भग. वान अपने शिप्य की जीवन शुद्धि का बड़ा ध्यान रखन है । ८७- स्कन्द परिव्राजक १८ चन्नी ६४५३ इतिहास संवत् राजगृह से वायव्य दिशा में विहार करता हुआ कचगला नगरी के छत्रपलास चत्य में ठहरा । यहां स्कन्द परिव्राजक मिलने आया। स्कन्द का इन्द्रभूति से पुराना परिचय था । वह जिज्ञासु था । उसके कुछ प्रश्न थे उसने पूछा-लोक सान्त है या अनन्त ? मैंने कहा-द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से सान्त है। परन्तु काल और भाव की दृष्टि से अनन्त है। स्कन्द-और जीव ? मैं-जीव भी द्रव्य क्षेत्र की दृष्टि से सान्त है और काल भाव की दृष्टि से अनन्त । स्कन्द-और मुक्ति ? मैं-मुक्ति भी द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टिसे सान्त है और कालभाव की दृष्टि से अनन्त । स्कन्द-भगवन् , मरण कौनसा अच्छा ? मैं-पंडित मरण अच्छा, बालमरण वुरा । जो मरण जीवन के कर्तव्य पूर्ण कर, जीवन को निष्पाप रखकर शान्ति के साथ होता है, जिसमें मृत्यु का भय नहीं होता, किन्तु अपना कर्तव्य करके विदा लेने का भाव होता है वह पण्डित मरण है। किन्तु जो मरण जीवन को पापमय बनाकर आशा तृष्णा ले रोते और
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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