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________________ JAAAMAA महावीर का अन्तस्तल उपासक रूप में ग्रहण करें । रख दिया । यह कहकर शब्दालपुत्र ने अपना सिर मेरे पैरों पर ३०९ ८६ - पत्नी का अपमान ६ लुंगी ९४५३ इतिहास संवत् पोलासपुर से भ्रमण करता हुआ इक्कीसवां चातुर्मास विताने के लिये वाणिज्यग्राम आया इसके बाद मगध की ओर विहार कर राजगृह आया। यहां कुछ पार्श्वापत्यों को अनेकांत दृष्टि से लोक अलोक का वर्णन सुना या । महाशतक ने भी यह वर्णन सुना और इससे वह बहुत प्रभावित हुआ। तब उसने श्रमणोपासक दीक्षा ली । राजगृह में प्रचार की दृष्टि से मैं बहुत दिन ठहरा और अपना बाईसवां वर्षावास भी राजगृह में किया । कल मुझे समाचार मिला कि महाशतक ने प्रोपधशाला मैं बैट बैठे अपनी पत्नी को नरक जाने का अभिशाप दिया है | यह ठीक नहीं हुआ । पति पत्नी को एक दूसरे के प्रति आदर का व्यवहार करना चाहिये । तथ्यपूर्ण बात भी कटुता के साथ नहीं कहना चाहिये । खासकर प्रोपघशाला में तो चित्त बहुत शांत रखना चाहिये। यह माना कि रेवती ने प्रशाला में जाकर पति से काम याचना की थी । यह याचना अनवसर और अस्थान में थी, फिर भी इस कारण से महाशतक को अपने मनका सन्तुलन नहीं खोना चाहिये था। मैंने गौतम को बुलाकर कहा- गौतम, तुम महाशतक के पास जाओ और कहो कि 'तुमने एक श्रमणोपासक होकर और प्रोपधशाला में बैठकर पत्नी को जो गाली दी वह ठीक नहीं किया। इसका तुम्हें प्रायश्चित्त करना चाहिये ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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