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________________ महावीर का अन्तस्तक [३१ Annx दुःखी होते हुए होता है वह बाल मरण है, वह बुरा है। . स्कंद को इससे बहुत सन्तोप हुआ। उसने कहा-भगवन्, में पंडित मरण मरना चाहता है इसलिये आपके शिष्यत्व में श्रमण धर्म स्वीकार करता हूं। ____ मैंने कहा-जिसमें तुम्हें सुख हो वही करो। ८८-जमालिकी जुदाई २७ चिंगा ६४५४ इ. सं. छत्रपलास चैत्य से निकलकर में श्रावस्ती आया । काष्टक चाय में ठहरा । यहां नान्दनीपिया तथा उसकी पत्नी आश्विनी और सालिहीपिया और उसकी पत्नी फाल्गुणी ने उपासकता स्वीकार की । वहां से विदेह की तरफ प्राया और वाणिज्य ग्राम में तेईसवां वर्षावास पूर्ण किया । वहां से ब्राह्मणकुंड आया। यहां आज एकान्त में जमाल मेरे पास आया और. बोला-अब मैं अपने संघ के साथ अलग विहार करना चाहता हूं भगवन् ! मैं सो किसलिये ? ? जमालि-इसालये कि संघ में मेरा उचित मान नहीं है। मैं आपका जमाई हूं, कुलीन हूं, ज्ञानी हूं, पर मुझे अभी तक केवली घोषित नहीं किया गया, न गणधर का पद दिया गया। में केवली होने का सम्बन्ध अपने आत्मविकास से है, मेरी नातेदारी से नहीं। और गणधर होने के लिये विशेषमात्रा में श्रम और लगन चाहिये। जमालि-तो मेरे आत्मविकास में क्या कमी है ? मैं-अपने को केवली धोपित कराने के लिये जो ला मेरे ऊपर इतना जोर डाल रहे हो यही कमी क्या कम है ।केवली
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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