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________________ ३०२ ] महावीर का अन्तस्तल पर वह कितना भी कृतघ्न बने, कितना भी ज्ञानचार वने वास्तविक महत्ता उसे न मिलेगी, जीवन के अन्त में असे पछताना पड़ेगा । समान क्षेत्र में काम करने वाले परिचित लोग श्र ईर्ष्यालु बनकर इसी प्रकार सत्य-विद्राही बन जाते हैं । २० ८४ - मृगावती की दीक्षा मम्मेशी ६४५९ इतिहास संवत् अपना १९ वां चातुर्मास भी मैंने राजगृह में किया । फिर आलभिका होते हुए कौशाम्बी पहुँचा जहां मृगावती आदि ने दीक्षा ली, और इससे हजारों मनुष्यों की हत्या बचगई । अज्जयिनी का राजा चंडप्रद्योत मृगावती के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर कौशाम्बी पर चढ़ आया था । इसी समय मृगावती का पति शतानिक राजा अतिसार से बीमार होकर मर गया था। राजकुमार उदयन छोटा था । मृगावती ने छल से कहा कि अभी तो मैं नवविधवा हूं इसलिये शादी नहीं कर सकती, और राजकुमार भी छोटा है इसलिए नगरी नहीं छोड़ सकती, पर नगरी की रक्षा का प्रबन्ध होजाय तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगी, तब तक वैधव्य को भी काफी दिन हो जायेंगे इसप्रकार लोकलाज़ से भी रक्षा होगी। चंडप्रद्योत मृगावती की इन बातों में आगया और उसने चारों तरफ का कोट मजबूत करा दिया और नगर में खाद्यान्न का संग्रह भी अच्छा करवा दिया। तब मृगावती ने उसे धुतकार दिया और उज्जयिनी से गड़बड़ी के समाचार आने से असे वापिस जाना पड़ा । 76 परन्तु मृगावती को पाने का इरादा उसने न छोड़ा । मृगावती की चालाकी से भी वह क्रुद्ध होगया था। इसलिए बड़ी भारी सेना लेकर उसने फिर नगर घेर लिया और इसी अवसर पर मैं कौशाम्बी पहुँचा । चण्डप्रद्योत मेरे दर्शन को भी आने लगा ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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