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________________ महावीर का अन्तस्तल [ ३०१ मात्र को कर रहे हैं इसमें बुराई क्या है ? और धंधा किस बात का १ 41^^~WA गोशाल - यदि तुम्हारे धर्माचार्य ऐसे ही समर्थ ज्ञानी तो सब के साथ उन अतिथिशालाओं में क्यों नहीं ठहरते हैं, सम्भवतः जानते हैं कि सब में ठहरने से चर्चा होगी और उन्हें निरुत्तर होना पड़ेगा । आईक - क्या हास्यास्पद वात करते हो श्रमण, किसान झाझखाड़ों में बीज नहीं वोता अच्छी जमीन में बीज बोता ह, इसका यह कारण नहीं है कि किसान की कुल्हाड़ी झाड़ झंखाड़ों को काट नहीं सकती ? पर काट करके भी वहां डालागया वीज निष्फल जायगा इसलिये वह साफ खेतों में बीज डालता है । प्रभु ने जो सत्य पाया है वह मल्लयुद्ध करने के लिये नहीं, किंतु जगत का कल्याण करने के लिये । इसलिये कल्याणेच्छु जनता को वे सत्यका सन्देश देते हैं । यो कोई कैसा ही प्रश्न या प्रश्न - जाल करे वे असे असी तरह निर्मूल कर देते हैं जैसे किसान अन्न के पौधों के बीच में ऊगे हुये खास फूस को उखाड़ फेंकता है । * यह सुनकर गोशालक मुँह मटकाकर चला गया । और आईक ने आकर वह विवरण मुझे सुनाया । मनुष्य - प्रकृति कैसी आश्चर्यजनक है । जो गोशाल मेरे साथ अत्यन्त विनीत था, लाड़ प्यार के बच्चे के समान बना हुआ था, समय समय पर मेरी प्रशंसा के पुल बांधता था. आज कितना कृतघ्न और निंदक बनगया है । मेरे पास से ली हुई ज्ञान सामग्री को तोड़-मरोड़कर ऊपर से नाममात्र का ननुनच लगाकर अपनी छाप लगाता है । अपनी तुच्छता पर तो महत्ता की छाप लगाता है, और पूर्वपरिचित होने के कारण मेरी प्रगट महत्ता को अस्वीकार करता है |
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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