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________________ महावीर का अन्तस्तल २७ . ..पप- पन्द्रह अहोरात्र का। ....मास- दो पकष का। .: ऋतु-दो मास की ... . ...... अयन-छः मासका। ....... वर्ष-दो अयन का। . पूर्वांग-चौरासी लाख वर्षों का। : । पूर्व-चौरासी लाख पूर्वागों का। । इसप्रकार झुत्तरोत्तर चौरासी लाख चोरासी लाख गुणित होते हुए, चुटितांग, त्रुटित, अडडांग, अडड, अववांव, अवव, हूहूकांग हहूक, उत्पलांग, उत्पल, नलिनांग, नलिन, निकु रांग, निकुर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग प्रयुत. नयुतांग, नयुत, चूलि कांग, चूलिका, प्रहेलिकांग, प्रहेलिका . इसप्रकार कालगणना है इसके बाद उपमा से असंख्य वर्षों के पल्य और उससे बड़े सागर का परिमाण बताया। .. - इसके बाद परमाणु या प्रदेश से लेकर योजन तक क्षेत्र का भी माप बताया। यद्यपि तीर्थंकर का कार्य धर्म का सन्देश देना है और इसी विषय का वह सर्वज्ञ होता है, पर धर्म जीवन के हर कार्य में व्यापक है इसलिये अप्रत्यक्ष रूप में बहुत से विषयों के साथ असका सम्बन्ध आजाता है इसलिये तीर्थकर को अन्य विषयों पर भी अपना सन्देश देना पड़ता है। अपने शिष्यों को बहुत बनाना भी आवश्यक है। . .. . .. ७९-कठोर अनुशासन . १ धामा २४४८ इतिहास संवत् ... ... गतवर्ष राजगृह में सोलहवां चाबुमाल पूरा कर मैंने
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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