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________________ २२६ } सहावार का अन्तरतल में बिहार करता हुआ सोलहवें चातुर्मास के लिये राजग्रह नगर आया । यह नगर मेरे तीर्थ के प्रचार का अच्छा केन्द्र बनगया है। यहां धन्य और शालिभद्र ने दीक्षा ली । शालिभद्र के स्वाभिमान मे ही असे दीक्षित किया । वह नहीं चाहना था कि किसी के आगे झुकना पड़े, पर एक बार उसे राजासे मिलने के लिये महलसे नीचे उतरना पड़ा | इसका शालिभद्र के मनपर बड़ा प्रभाव पड़ा । वह किसी ऐसे पद की खोज में था जिसे पाने पर राजाओं के सामने न झुकता पड़ । जब उसे पता लगा कि श्रमणों को राजा के सामने नहीं झुकना पड़ता तब वह श्रमण होगया । इसमें सन्देह नहीं कि आत्मगौरवशाली व्यक्तियों को श्रामण्य पर्याप्त सुखप्रद है । अन्य इन्द्रियों का आनन्द श्रमणों को भले ही न मिले या कम मिले, पर यह मानसिक आनन्द तो पर्याप्त मिलता है । इसी निमित्त से शालिभद्र का उद्धार होगया । ७८- कालगणना २८ दूंगा ९४४७ इ. स. गौतम ने आज कालगणना सम्बन्धी प्रश्न पूछा । मैंने लौकिक अलौकिक सभी प्रकार की गणना बताई | समय- फाल का सब से सूक्ष्म अंश । नावलिका- असंख्यात समयों की । उच्छ्वास- बहुतसी थावलिकाओं का । निश्वास- उच्छ्वास के घरावर समय 1 श्वासोच्छ्वास (प्राण ) - झुच्छ्वास निश्वास मिलाकर । स्तोक- सात प्राणों का । लव- सात स्तोकों का । मुहूर्त - ७७ लबों का, या ३७१३ स्वासोश्वासों का । अहोरात्र - तीस मुहूर्त का
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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