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________________ २७४ ] महावीर का अन्तस्तल मुख्य यह कि मैं जानना चाहता था कि मेरे जीवन की सफलता के महत्व को मेरी जन्मभूमिवाले स्वीकार करते हैं या नहीं । जन्मभूमि वाले कदाचित् प्यार करते हैं पर महत्व को स्वीकार नहीं करते । पर आज मुझे अस प्यार की जरूरत नहीं है किन्तु महत्व के स्वीकार की जरूरत है जिससे वे लोग मेरे बताये हुए रास्ते पर चलकर स्वपरकल्याण कर सकें । ब्राह्मण कुंडपुर में ठहरने का दूसरा कारण यह भी था कि मेरे लिये ब्राह्मणकुण्डपुर और क्षत्रियकुण्डपुर दोनों ही समान हैं । क्षत्रियकुण्डपुर में पैदा होने से मेरा उसके प्रति अधिक पक्षपात या आत्मीयता की भावना हो यह बात नहीं है । मुझे सारा जगत समान है । फिर भी आखिर में मनुष्य हूं। जब मैं इस तरफ आया तब मुझे देवी का ध्यान अवश्य आया । सोचता था कि जानेपर पता लगेगा कि इतना लम्बा समय देवी ने किस तरह बिताया होगा । प्रियदर्शना तो अब काफी बड़ी होगई होगी। बल्कि उसका विवाह भी होगया होगा | देवी का और प्रियदर्शना का कैसा व्यवहार रहता है, अपना असन्तोष या उलहना वे किन शब्दों में प्रगट करती हैं, इस तरह मनमें एक तरह की उत्सुकता थी । हालांकि वह किसी रूप में किसीपर प्रगट नहीं होने पाई थी । राजग्रह में काफी सफलता प्राप्त करके मैं इस तरफ शीघ्र से शीघ्र आया इसमें एक कारण यह भी था । हालांकि सत्यप्रचार के विरुद्ध न होने से इसमें कर्तव्य विमुखता कुछ न थी । - पर यहां आनेपर मेरी सारी उत्सुकता भीतर की भीतर ठंडी होगई । जिसकी मुझे कल्पना तक नहीं थी वही बात सुनने को मिली । प्रियदर्शना ज्यों ही मेरे पास आई त्यों ही रो कर पैरों पर
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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