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________________ महावीर का अन्तस्तळ गिर पड़ी। वह भूलगई कि वह एक महान धर्मगुरु के सामन ह जो वीतराग कहलाता है । उसने 'पिताजी' कहकर आंसू बहाते ) हुए कहा माताजी तो चली गई पिताजी ! VAAAAA २७४ मैं क्षणभर को स्तब्ध होगया । प्रियदर्शना को सान्त्वना भी न दे सकः । उसने कहा- पिताजी, आपके जाने के बाद माताजी ने आपसे किसी न किसी तरह का सम्बन्ध जोड़े रखने की बड़ी कोशिश की, पर आपकी निष्पृहता के कारण वह जुड़ा न रह सका। जब आपने पारिपार्श्वक के रूप में भी किसी को पास रखना मंजूर न किया तब उन्हें बहुत दुःख हुआ । मैं तो छोटी थी, कुछ समझती न थी, पर इतना याद है कि एक रात माताजी रातभर रोती रही थीं और इस तरह रोती रही थीं कि छोटी होने पर भी मुझे भी रातभर रोना पड़ा था । जब मेरी अम्र कुछ बड़ी हुई तब मैं बहुत कुछ समझी । पिताजी ! माताजी मुझे हर तरह आराम पहुँचाती थीं, तरह तरह के गहने कपड़े पहिनाती थीं, अच्छा अच्छा खिलातीं थीं पर मैंने कभी अन्हें अच्छा खाते नहीं देखा, मेरे आग्रह पर भी उनने कभी गहने या अच्छे कपड़े नहीं पहिने, और न उन्हें कभी रातभर नींद आई। पिताजी, वादल तो चार माह ही वरसते हैं पर मेरी माताजी की आंखें बारह माह वरसती रहती थीं । मेरे विवाह के बाद विदा के समय सुनने कहा था- 'तेरे विवाह से मैं कृतकृत्य होगई बेटी । उनने बाहर जाकर मानव निर्माण का महान कार्य उठाया है और मुझे तेरे निर्माण का कार्य साँप गये थे । उनका कार्य महान है वे असे पूरा करने के लिये अमर हों, पर मैं अपना काम कर चुकी, अब यहां मेरे रहने की द मुझे जरूरत है न संसार को जरूरत है "
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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