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________________ २५४ ] महावीर का अन्तस्तल म-सा मैं जानता हूँ । आत्मा के अमरत्व पर थोड़ा बहुत अविश्वास हुए बिना कोई इसप्रकार के पाप में नहीं फस सकता । गौतम - पर आत्मा पर विश्वास किया जाय तो कैसे किया जाय | मरने पर सब तो यहीं राख होजाता है । बचता क्या है जिसे अमर कहा जाय ? मैं- यह जाननेवाला अनुभव करनेवाला; सन्देह करनेवाला कौन है ? गौतम - यह तो पंचभूतों के मिश्रण से पैदा होनेवाली अवस्था विशेष है । अलग अलग भूतों में जो गुग दिखाई नहीं देता वह मिश्रण में दिखाई दे जाता है । मद्य में जो मादकता है वह उसके भिन्न भिन्न घटकों में कहां है ? · मैं- है पर अल्प है। भोजन का भी नशा होता है, निद्रा भी एक नशा है पर अल्प है । परस्पर के संयोग से वह वर्गाकार रूपमें बढ़ता है पर असत् का उत्पाद नहीं है । दर्शन शास्त्र का यह मूल सिद्धान्त तो सर्वमान्य है कि सत का विनाश नहीं होता असत् का उत्पाद नहीं होता। यह तो तुम भी मानते होगे गौतम ! गौतम - जी हां ! यह मैं मानता हूं । मै- जब कोई द्रव्य पैदा नहीं होता तब कोई गुण भी पैदा नहीं होता । गुणों का समुदाय ही तो द्रव्य है । गुणों की पर्याय बदल सकती हैं, बदलती हैं पर नया गुण नहीं आता । गौतम - आपकी बात कुछ कुछ जच तो रही हैं । मैं- अच्छी तरह विचार करने पर पूरी तरह जवजायगी । तुम जरा सोचो कि कोई भी भूत द्रव्य क्या कभी यह अनुभव कर सकता है कि 'मैं हूं, और 'मैं हूं. इस अनुभव के क्या तुम टुकड़े टुकड़े कर सकते हो कि 'मैं हूं, अनुभव का एक टुकड़ा
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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