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________________ मावीर का अन्तस्तल [ २५५ ve..." पृथ्वी अनुभव करे, एक टुकड़ा जल अनुभव करे, इसी प्रकार एक एक टुकड़ा अग्नि बायु आकाश अनुभव करे ? क्या अनुभव के टुकड़े सम्भव है ? गौतम-अनुभव के टुकड़े कैसे होसकते हैं ? : महावीर-तत्र इसका मतलब यह हुआ कि किसी एक द्रव्य को ही यह अनुभव करना पड़ता है कि 'मैं हूं, । तव पंच भूतों में वह कौनसा एक भूत है जो अनुभव करता है कि में है। . गौतम-कोई एक भूत ऐसा अनुभव कैसे कर सकता है ? मैं तब इसका मतलब यह हुआ कि भूतों से अतिरिक्त कोई द्रव्य ऐसा है जो यह अनुभव करता है। गौतम-अब यह बात तो मानना ही पड़ेगी ? मैं-जब 'मैं हूं, इसप्रकार अनुभव करनेवाला एक स्वतन्त्र द्रव्य सिद्ध होगया तब सुसका न तो उत्पाद हो . सकता है, न नाश । क्योंकि असत् से सत् बन नहीं सकता, और सत् का विनाश नहीं हो सकता। उस स्वतन्त्र द्रव्य का नाम ही आत्मा है, जीव है। .. गौतम ने हाथ जोड़कर कहा-आपने मेरे सब. से बड़े संशय को नष्ट कर दिया प्रभु । अब आप मुझे अपना शिष्य समझें। . इतने में इन्द्रभूति के छोटे भाई अग्निभूति ने कहाअविनश्वर आत्मा के सिद्ध होजाने पर भी यह बात समझ में नहीं आती कि आत्मा बंधा किससे है ? अमूर्तिक अमूर्तिक से बंध नहीं सकता और मूर्तिक अमूर्तिक का बन्ध भी कैसे होसकता है ? . मैंने कहा-दिव्य दृष्टि को प्राप्त हुए बिना तुम उन कमब.
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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