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________________ महावीर का अन्तस्तल | २५३ यज्ञ करा लिये आये थे । मैंने अपन प्रवचन में वर्तमान यहाँ को आलोचना की । मने देखा कि जनता को यह रुचिकर हुई, इसलिये कुछ और लोग मेरे पास आये । लोगों का प्रवाह इस तरफ बदलता हुआ देखकर इन्द्रभूति गौतम को बड़ा संताप हुआ । तब वह मुझे पराजित करने के विचार से मेरे पास आया । और बोला- भ्रमण. मैंने सुना हकि तुन यज्ञां का विरोध करते हो, और जनता को भी धर्म से विमुख करते हो । मैं-धर्म तो धारण पोषण करनेवाला है, पर क्या इन हत्याकांड से धारण पोषण होना है ? निरीह जानवर तो जान से जाते ही है पर पिके काम में भी इससे बाधा पड़ती है । क्या यही धर्म है. क्या यही धारण पोषण है ? गौतम - जानवर जान मे जाने हैं पर स्वर्ग तो पात हैं 1 वास्तव में यह उनका पोषण ही है । और ऐसा पोषण है जो उन्हें इस जीवन में नहीं मिलता । मैं तो ऐसा पोषण खुद न लेकर जानवरों को क्यों दिया जाता है ? यज्ञकती और पुरोहित को चाहिये कि पहिले स्वयं यज्ञमें अपनी और अपने कुटुम्बियों की आहूति है। जब उनके स्वर्ग चले जाने पर भी स्वर्ण में जगह खाली रहे तो जानवरों को बुलाल | गीतम ने कुछ न कहा । तब मैंने कहा क्या तुम जानते हो गौतम, कि लोग ऐसा क्यों नहीं करते हैं ? गौतम - मैं इसका उत्तर नहीं देसकता । आप ही बतायें ! मैं- इसलिये कि न तो इन्हें स्वर्ग पर विश्वास हे न आत्मा के अमरत्व पर । गौतम - आत्मा के अमरत्व पर तो मुझे भी सन्देह है : ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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