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________________ २०८ ] महावीर का अन्तस्तल ५४ - सप्तभंगी '७ टुंगी ९४४१ ई. सं. इन दो दिनों में त्रिभंगी के विकास पर बहुत विचार हुआ। किसी भी पदार्थ को जानने कहने के लिये या किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिये अस्ति नास्ति अवश्य ये तीन भंग हैं । वस्तु धर्म के अनुसार तीन में से किसी एक भंग के द्वारा प्रश्न का उत्तर देना होगा । पर इन दो दिनों में जो गहराई से चिंतन किया उससे त्रिभंगी विकसित होकर सप्तभंगी होगई। क्योंकि कुछ प्रश्न ऐसे भी होसकते हैं जिनके अन्तर में दो दो भंगों का या तीनों अंगों का मिश्रण करना पड़े । सात तरह के प्रश्न और सात तरह के उत्तरों से सप्तभंगी होती है । जैसे ज्ञान के विषय में । १- प्रश्न - तत्व की दृष्टि से योगी कितना जानता है ? उत्तर- तत्वज्ञान की दृष्टि से योगी सर्वज्ञ है ( अस्ति ) २- प्रश्न अतत्वभूत पदार्थों की दृष्टि से योगी सर्वज्ञ है कि नहीं ? असर्वश ? उत्तर- नहीं है । ( नास्ति ) ३ - प्रश्न - तत्व और अतत्व दोनों दृष्टियों का एक साथ विचार किया जाय तो ज्ञान की सीमा क्या है ? 72 उत्तर-ऐसी अवस्था में ज्ञान की सीमा कह नहीं सकते । ( अवक्तव्य ) ४- प्रश्न- योगी या अर्हत् को हम सर्वज्ञ कहें या उत्तर-तत्वज्ञान की दृष्टि से सर्वज्ञ कहें और अतत्वज्ञान की दृष्टि से असर्वज्ञ । ( अस्ति नास्ति )
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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