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________________ २०२] महावीर का अन्तस्तल ~ ~ ~ ~ ~ . ...... ... . आनन्द- यह आपने बहुत ही ठीक कहा भगवन ! विकास की दृष्टि से मनुष्य, पशु और लारकियों से श्रेष्ट तो है हो, पर देवों से भी श्रेष्ठ है । फिर भी इतना तो कहना ही पड़ेगा। कि जो देशावधि देव नारकियों को जन्म से मिल जाता है वह मनुष्य को जीवन के अन्त तक नहीं मिल पाता, इक्के दुक्के तप. स्त्रियों को मिला भी तो इससे क्या ? मैं-पर इससे देव नारकियों का ज्ञान मनुष्य से अधिक . नहीं होसता। ___ आनन्द-जिन मनुष्यों को अवधिज्ञान नहीं मिला है उनसे तो अधिक होता ही है भगवन । मैं- तुम यहां बैठे बैठे वैशाली नगरी का चौराहा देख। सकते हो आनन्द ? आनन्द- सो तो नहीं देख सकता प्रभु ! मैं-पर झुस चोराहे पर बैठा हुआ बैल वह चौराहा देख सकता है । तत्र क्या तुम समझते हो कि बैल का ज्ञान तुम से अधिक है ? आनन्द-यह कैसे कह सकता हूँ? मैं- इसी तरह देव नारकियों का अवधिज्ञान इन्हें मनुष्य सें अधिक ज्ञानी नहीं बनाता । स्वर्ग में रहनेवाले यदि स्वर्ग का प्रत्यक्ष दर्शन करें और नरक में रहने वाले अगर नरक का प्रत्यक्ष दर्शन करें और स्वर्ग नरक से दूर रहनेवाला मनुष्य उनका दर्शन न कर पाये तो इससे मनुष्य का ज्ञान कम नहीं होजाता । देवा नारकियों का अवधिज्ञान जन्म से होता है इस. लिये वह औपपादिक हैं । ज्ञान के विकास को रोकनेवाला जो अन्तमल है अर्थात् ज्ञानावरण है झुसका क्षय अपशम उसमें नहीं होता जिससे उनका विकास कहा जासके। पर मनुष्य के
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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