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________________ महावीर का अन्तस्तल (२०१ आनन्द-आखिर आप तीर्थकर हैं भगवन् , तीर्थकर को कम से कम देशावधि ज्ञान जन्म से ही होना चाहिये । मैं- हां मैं ! जब से होश सम्हाला है, कुछ विचार करना सीखा है, तब से जो ज्ञान है उसे जन्म से ही कहने में कोई आपत्ति नहीं है। ___ आनन्द- क्या जन्म से और किसी को भी देशावधिज्ञान होसकता है भगवन् ? मैं- यहां तो और किसी को नहीं होलकता, हां ! स्वर्ग नरक के प्राणियों को होसकता है । क्योंकि देशावधि ज्ञान ले हम स्वर्ग नरक का प्रत्यक्ष करते हैं, पर जो प्राणी स्वर्ग या नरक में ही पैदा हुए हैं उन्हें तो स्वर्ग या नरक का प्रत्यक्ष जन्म से ही होगा। उन्हें स्वर्ग नरक देखने के लिये तपस्या की क्या आवश्यसता होगी? आनन्द- इसका तो मतलब यह हुआ भगवन, कि देवों और नारकियों को मनुष्य की अपेक्षा अधिक झान होता है। देवों को तो ठीक है, पर नारकियों को भी " मैं-पर मनुष्य की अपेक्षा उनका दुर्भाग्य यह है कि जीवनभर उनका विकास रुका रहता है । पशु भी जन्म के बाद ज्ञान में शक्ति में कुछ विकास करता है पर देव नारकी कुछ विकास नहीं कर पाते । जीवन का सच्चा आनन्द विकास में हैं, जन्म की पूंजी में नहीं । जन्म से मनुष्य की अपेक्षा पशु क बच्चा अधिक समर्थ होता है पर विकास में वह शीघ्र ही पिछड़ जाता है इसलिये मनुष्य की अपेक्षा पशु विकास की दृष्टि से अभागी हं. और देव नारकी जन्म के समय पशु से भी अधिक समर्थ होते हैं पर विकास में बिलकुल प्रगति-हीन होते हैं इसलिये और भी अभागी है।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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