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________________ महावीर का अन्तस्तल गोशाल ने ये सब बातें इतने जोर से कहीं कि तापस ने भी सुनीं और वह चकित होकर नाचते हुए गोशाल को देखने लगा | वह मुझे अपने से बड़ा मन्त्रवादी समझकर मेरे पास आया । और बोला- प्रभु, मैंने आपका प्रभाव जाना नहीं था इसलिये मेरा अपराध क्षमा कीजिये | १९२ मैंने कहा - प्राणिरक्षा की दृष्टि से मैंने शीतलेश्या का प्रयोग कर गोशाल के प्राण बचाये। मुझे तुमसे द्वेष नहीं है । मैं किसी से द्वेष नहीं करता । " उसने कहा -धन्य है प्रभु आपकी वीतरागता । उसके चले जाने के बाद गोशाल ने मुझ से पूछा । वह तेजोलेश्या कैसे मिलती है प्रभु, और इस तापस को कैसे मिल गई ? मैंने कहा- छः महीने तक बेला उपवास करने से तथा तीसरे तीसरे दिन पारणा में मुट्ठीभर सुखा अन्न और अञ्जलिभर पानी पानी से तेजोलेश्या सिद्ध होती है । मैं जानता हूं कि एक बार वेला करना भी गोशाल की शक्ति के बाहर है फिर छः महीना तक क्या करेगा, और इतने से पारणे से इस खादाड़ का क्या होगा ? ४९ - गणतंत्र और राजतंत्र १६ जिन्नी ९४४१ इ. सं. कर्मग्राम से जब मैं सिद्धार्थपुर आरहा था तभी मार्ग में गोशाल ने मेरा साथ छोड़ दिया । सम्भवतः वह तेजोलेश्या सिद्ध करने की चिन्ता में गया है। आश्चर्य नहीं कि वह अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिये छः महीने तक तपस्या भी कर जाय । यदि वह ऐसा करगया तो पूरा प्रवंचक बन जायगा । अस्तु ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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