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________________ [ १०६ और : वीरघोष अच्छे ने ही तेरा पात्र चुराया है। तू जा, अपने घर की पूर्व दिशा में जो एक बड़ा झाड़ है उसके नीचे हाथभर जमीन खोद, सब पता लग जायगा । महावीर का अन्तस्तल फिर इन्द्रशर्मा से कहा - अच्छंदक ने ही तेरा मेढ़ा मार कर खालिया हैं | अब मेढ़ा तो मिल नहीं सकता लेकिन उसकी हड्डियाँ बेरी के झाड़ के पास गड़ी हुई अब भी मिल सकती हैं । वीरोप और इन्द्रशमी कुछ आदमियों के साथ अपनी अपनी जगह खोड़ने चले गये। अच्छेदक का मुँह जरा सा रह गया. लोगों की घृणापूर्ण दृष्टि असपर पड़ने लगी। इसके बाद लोगों ने कहा- और भी कोई बात बताइये देवार्य, अच्छन्दक ऐसा पापी है इसकी हमें कल्पना तक नहीं थी । मैंने एक बात ऐसी हैं जिसको मैं नहीं कहना चाहता, उसकी पत्नी बतायगी, क्योंकि वह बात अच्छे दक के शील से सम्बन्ध रखती है | - घबराकर अदक उठकर भागा, लोग भी उसके पीछे दौड़े । घर जाकर लोगों ने उसकी पत्नी से पूछा । पत्नी ने कहा यह व्यभिचारी है, एक नाते की बहिन के साथ यह व्यभिचार करता है । दिनमें उसे बहिन बहिन कहता है और रात में व्यभि चार करता हूँ । मुझे तो यह पूछता भी नहीं ! गांव भर में अच्छेदक का धिक्कार होने लगा। दो दिन वह घर के बाहर न निकला, तीसरे दिन उपाकाल के समय वह एकान्त में मेरे पास आया और रोता हुआ बोला- भगवन्, आप मुझ पर दया करके चले जाइये ! नहीं तो मैं मर जाऊंगा । मैंने कहाअच्छे के पापों पर तो मैं दया कर सकता हूं पर नहीं कर सकता ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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