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________________ ११० ] अच्छे पर आज से में वे स पाप छोड़ता हूं भगवन्, न मैं चोरो करूंगा न व्यभिचार करूंगा ।.. महावीर का अन्तस्तल . मैं- पर पत्नी के साथ मारपीट तो करोगे । अच्छे नहीं भगवन्, अब उसके साथ मारपीट करने की मेरी हिम्मत ही नहीं है । मैंने शपथ ले ली है कि मैं उसके ऊपर उंगली भी उठाऊं तो उंगली पर इन्द्र का वज्र पड़े । मैं- पर झूठी भविष्यवाणियां सुनाकर लोगों को ठगते तो रहोगे ! अच्चंदक- अब जुसकी भा सम्भावना न रही भगवन् ! 'अब तो गांव मुझपर विश्वास नहीं करता । मैं वह सब छोड़ दूंगा। जो कुछ ज्योतिष का मुझे थोड़ा बहुत ज्ञान है उसीसे मुहूर्त आदि बतादिया करूंगा। अब तो भूखों मरने की बारी आगई है भगवन् ! मुझे अच्छक पर दया आगई । मैंने उससे कहा- मैं आज ही चला जाऊंगा और लोगों को समजाभाऊंगा कि वे तुम्हें भूखा न मरने दें | अच्छन्दक प्रणाम कर चला गया। अच्छे उपयोगी होगा । " अच्छन्दक के चले जाने पर लोग मेरे पास आये। मैंने कहा - अच्छन्दक ने अत्र अपने पाप छोड़ दिये हैं और तुम लोगों कोन ठगन की भी प्रतिज्ञा ली है इसलिये अब तुम लोग असे निक्षा देते रहना । के हृदय परिवर्तन के लिय इतना अवसर .
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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