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________________ १०८ ] लोग चकित होकर चले गये। थोड़ी देर बाद अच्छेदक को साथ लेकर आये । वह मुझे पराजित करने आया था । उसने एक घासका तिनका हाथ में लेकर पूरा इसके टुकड़े होंगे कि नहीं ? उसने सोचा कि यह देवार्य हां कहेगा तो टुकड़े न करूंगा, न कहेगा तो कर दूंगा। महावार का अन्तस्तल M^^^ पर मैंने उत्तर दिया- इसके टुकड़े एक बैल करेगा । मेरी बात सुनकर जनता हँस पड़ी | अच्छंद ने भी यह सोचकर तृण फेंक दिया कि मैं टुकड़े करूंगा तो बैल कहलाऊंगा । जनता ने यह सोचकर सन्तोष किया कि सचमुच कोई बैल ही इसके टुकड़े करेगा, अच्छंद नहीं । देवार्य ने ठीक भविष्यवाणी की है । अब मेरी बारी थी । मैंने कहा- यहां कोई वीरघोष है । वीरघोष वहीं बैठा था । असने कहा -- उपस्थित हूँ देवार्य मैंने कहा- ग्रीष्म ऋतु में तेरा कोई पात्र चोरी गया था ? वीरघोष ने कहा- गया था देवार्य, पर उसका अभी तक पता नहीं लगा । मैंने कहा- बताओ अच्छंदक, वह कहां है ? अब अच्छेदक क्या बताये ? अपनी चोरी कैसे खोलदे । इसके बाद मैंन पूछा - यहां कोई इन्द्रशर्मा है ? इन्द्रशर्मा हाथ जोड़कर बोला- जी हां ! मैं हूँ | मैंने पूछा- क्या पहिले तेरा मेढ़ा खोया गया था । उसने कहा- जी हां ! मैंने कहा- बताओ अच्छेदक वह कहां है ? अच्छेदक का मुँह उतर गया | तब मैंने कहा- देख
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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