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________________ महावीर का अन्तरतल. [१०७ अगर पूरी तबाहता कि ग्याला अचरज में पड़गया । बाला ही महाराज । पर आपको कैसे पता लगा ? आप तो बड़े ज्ञानी मालूम होते हैं ! . मैंने मुसकरा दिया और फिर कहा-तू सपने म रोया क्यों करता है ? . अब तो ग्याला मेरे पैगें पर गिर पड़ा । बोला-आप देवार्य तो घट घट की बातें जानते हैं। . इसके उत्तर में भी मैंने मुसकगदिया। वह गांव की तरफ दौड़ा गया । दो एक साधारण वातों से वह इतना प्रभावित हुआ कि वह मुझे त्रिकालवेत्ता समझने लगा। लोग इतने मूद हैं कि थोड़े से चतुर आदमी को सर्वज्ञ त्रिकालदर्शी आदि सब कुछ समझ डालते हैं। में चाहता हूँ कि इन मूढो का यह अन्धविश्वास हटा दूं, अगर पूरी तरह न हया सकं तो इतना तो कर ही दूं कि ये धूनों के शिकार न हुआ करे, अन्धविश्वास का झुपयोग धर्म सदाचार आदि को पाने और स्थिर रखने के काममें किया करें। थोड़ी देर में वह ग्वाला गांव की भीड़ लेकर मेरे पास माया । मैंने इधर अधर की साधारण बाते सुनाकर अन सव को प्रभावित कर दिया । ये लोग इतने मूर्ख और सहज श्रद्धालु है.कि कोई भी चतुर आदमी इनके सामने सर्वज्ञ बनसकता है। इनकी बात सुनकर ही उन्हीं के आधार से वहतली. वाते ऐसी जासकती हैं कि ये प्रभावित हो जाते हैं । मैंने भी यही किया। एक बोला-देवार्य तो अच्छदक गुरु की तरह. अब बाते बनाते हैं। भने कहा-वह तो धर्त है , तुम लोगों को ठगकर जीविका करता है, वह कुछ नहीं जानता । वास का अपही है कि ये
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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