SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७८ ) प्र. १५२ म. स्वामी के चरण को रेतीले मैदान में किसने देखा था ? और उसने क्या किया ? उ. पुष्य नामक सामुद्रिक ने नदी के तट की स्वच्छ धूलि पर महावीर के चरण चिन्ह अंकित देखे । देखते ही वह चौंक उठा, उसने पद चिन्हों में अंकित रेखाओं को सूक्ष्मता के साथ देखा और मन ही मन सोचने लगा--- "ये दिव्य लक्षण तो किसी चक्रवर्ती के हैं सचमुच कोई चक्रवर्ती विपत्ति में फँसा हुआ अकेला ही अभी-अभी इस रास्ते से नंगे पैरों से गुजरा है । ऐसे ग्रवसर पर उसके पास पहुँच कर सेवा करनी चाहिए ताकि भविष्य में जब वह चक्रवर्ती बनेगा तो मेरा भी सितारा चमक उठेगा । . सामुद्रिक पुष्य पद चिन्हों का अनुसरण करता हुआ सीधा थुरगाक सन्निवेश के परिसर में जा पहुंचा । वहाँ उसने एक श्रमण को ध्यानस्थ देखा । पुष्य कुछ क्षण भ्रमित - सा, चकित सा देखता रहा, फिर एकदम निराश हो गया । सिर पीटते हुए उसने कहा - "हाय आज तो मुझे अपना शास्त्र भी धोखा दे गया। लक्षण रेखायें और चिन्ह सब चक्रवर्ती के है,
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy