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________________ उ. ( ७५ ) खेमिल की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि सुदंष्ट्र देव ने अपनी दिव्य शक्ति से नदी में भयंकर तूफान खड़ा कर दिया। पानी बांसों उछलने लगा । लहरें नाविकों को उछालने लगी जैसे बालक गेंद को इधर-उधर उछालते है । यात्रियों का हृदय दहल रहा था, भय के कारण कुछ चीखने-चिल्लाने लगे थे । उ. प्र. १४४ म. स्वामी ने जलोपसर्ग के समय क्या किया ? ऐसे घोर उपसर्ग में भी प्रभु एक कोने में निश्चल, स्थिर, प्रशांत भाव से ध्यान-मग्न वैठे थे । प्र १४५ म. स्वामी को ध्यानस्य देखकर वेमिल ने क्या कहा था ? प्रभु को व्यानस्य देखकर सेमिल को घोर अंधकार में एक ग्राशा की किरण चमकती हुई दिखाई दी । यात्रियों को धीरज बंधाते हुए कहा- "संकट तो बहुत बड़ा है, लेकिन इस नाव में एक ऐसा दिव्य महापुरुष भी बैठा है, जिसके असीम पुण्य प्रताप से हम सब बाल-बाल बच जायेंगे । धीरज रखकर सभी इस महापुरुष की वंदना स्तुति करें । उ.
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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