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________________ । ३०८) से कुछ लोगों ने शिवराजर्षि के पास जाकर कहा-"श्रमण तीर्थकर महावीर का कथन है कि प्रापका सिद्धांत मिथ्या है, विश्व में द्वीप समुद्र सात नहीं, किन्तु असंख्य है।" प्र. ५५३ शिवराजर्षि ने लोगों की बात सुनकर क्या किया था? उ. शिवराजर्षि ने प्रभु महावीर की दिव्य ज्ञानशक्ति के संबंध में कई बार चर्चाएं सुनी थी, वे मानते थे कि महावीर यथार्थभाषी हैं। सचमुच ही महावीर का कथन सत्य होगा; मैं भी उस महापुरुष के निकट जाकर अपनी भ्रांति दूर करूं। वे महावीर की धर्म-सभा में पहुँचे। प्रथम दर्शन में हो श्रद्धाभिभूत होकर त्रि-प्रदक्षिणा के साथ वे एक ओर वैठ गए। प्र. ५५४ म. स्वामी ने शिवराजर्षि के संशय का निरा करण कैसे किया था ? सर्वदर्शी प्रभु महावीर ने अपने प्रवचन में ही शिवराजर्षि के समस्त संशयो का निरा ग कर दिया।
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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