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________________ ( २५५ ) • गृहस्थी के अनुरूप वहुत अल्प सामान के साथ रहता था। रोज पूणी कातना तथा वेचना और जो मिले उससे जीविका निर्वाह कर संतुष्ट रहना। उसकी दैनिक चर्या थी-नियमित ... सामायिक-स्वाध्याय करना । प्र. ३२६ महाराजा श्रेणिक के आगमन पर पूणिया ने क्या किया था? उ. मगधपति श्रेणिक को अपने आवास पर उपस्थित देखकर पूरिणया श्रावक ने प्रसन्नता के साथ स्वागत किया और पूछा-"मैं आपर्क क्या सेवा कर सकता हूँ ?" प्र. ३३० महाराजा श्रोणिक ने पूणिया से क्या कहा था शोणिक ने कहा-'सेवा तो मैं तुम्हा करूँगा। तुम मेरा एक कार्य कर दो। व उपकार मानूंगा। वस, तुम्हारो एक सार यिक मुझे चाहिये । जो भी मूल्य चा वह ले लो। लाख, दस लाख-जो मन में बस एक सामायिक दे दो! अं. ३३१. महाराजा श्रेणिक की बात सुनकर पूरिगर
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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