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________________ ( २२२ ) प्रेरित करने वाला स्वयं भोग के दल-दल फँसा पड़ा हूँ । बस, अब मैं जाग गया, मेरी स्मृति प्रबुद्ध हो गई, मेरे वासना के संस्कार समाप्त हो गये - लो मैं जा रहा हूं, उसी पथ पर, जिस पथ से भटक कर यहाँ आ गया था । नंदीषेरण प्रबुद्ध होकर चल पड़े और सीधे भगवान महावोर के पास पहुंचे । प्रे. २१२ नदीषेण ने भगवान महावीर के पास जाकर क्या किया था ? उ. माद और मोह गई थी । प्रभो ! "प्रभो ! मैं भटक गया था, के नशे में मेरो चेतना लुप्त हो पुनः मुझे अपना शरण में लीजिये । खोई हुई अमूल्य चारित्रनिधि पुनः प्राप्त करने का मार्ग बताइये । " प्र. २१३ म. स्वामीने नंदीषेरण से क्या कहा था ? प्रभु ने नंदीषेरण को धैर्य वंधाया - नंदीषेरण ! तुम पुनः जाग गये, यह अच्छा हुआ भोग में भी तुम्हारी अतश्चेतना योग की ओर केन्द्रित रही - पतन में भी पवित्रता के संस्कार लुप्त नहीं हुए थे अतः तुम पुनः अपना कल्याण कर x उ.
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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