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________________ ( २२१ ) पूरी नहीं हो पा रही थी। इस तरह नदीषण अपने संकल्प पर दृढ थे । प्र. २१० नंदीषण के भोजन के विलम्ब पर गणिकाने क्या किया था। उ. नंदीषेण के भोजन के विलम्ब से मुझलाकर गणिका स्वयं उन्हें बुलाने आई-"प्राणेश्वर ! चलिये रसोई ठडी हो रही है।" नंदीषण ने कहा-"क्या करूं, अभी तक दसवां मनुष्य समझ ही नहीं पा रहा है।" गणिका कटाक्ष पूर्वक हँसकर वोली-"तो क्या हुआ मेरे देवता ! दसवें स्वय को ही समझ लो और चलो-भोजन ठडा हो रहा है।" प्र. २११ नंदीण ने गरिएका के कटाक्षको सुनकर क्या किया था ? नदोपेण के अन्तश्चक्षु खुल गये, तंद्रा टूट गई, अधकार में एक चमक-सी दिखाई दी-ठीक कहती हो तुम-दसवां स्वयं को ही समझ लू ? कैसी विडम्बना है यह मेरी कि दस-दस मनुष्यों को प्रतिवोध देने वाला स्वयं शव तक ऊंघ हो रहा हं ? दूसरों को त्याग के पथ पर
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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