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________________ ( १३८ ) देवियों के साथ हास- विलास कर रहा है ?' क्यों न इसके अहंकार को चूर-चूर कर दिया जाय ? अन्य असुर कुमारों ने उसे समझाया"यह सौधर्मेन्द्र है. और अपने विमान में बैठा है, हमसे अधिक शक्तिशाली है, अतः इससे कुछ छेड़-छाड़ करना अपनी जान से खेलना होगा ? उ अहंकार में दीप्त चमरेन्द्र ने अट्टहास के साथ अन्य असुर कुमारों का उपहास किया - "तुम सब कायर हो, मैं किसीको यों अपने सिर पर बैठा नहीं देख सकता । श्रभी मैं उसकी टांग पकड़कर श्रासन से क्या, स्वर्ग से भी नीचे फेक देता हूं । प्र. ३१९ सौधर्मेन्द्र के सामने प्रहार करने के पूर्व चमरेन्द्र किसकी शरण लेने गया था ? अहंकार, ईष्या, और क्रोध के आवेग में अंधा वना हुआ सुरेन्द्र एक भयंकर हुंकार के साथ उठा सौधर्मेन्द्र पर प्रहार करने, तभी सहसा मनके सघन अन्धकार के एक कोने में हलकी सी ज्योति जली, उसे अपनी दुर्बलता और
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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