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________________ ( १३६ ) "प्र. ३१७ चमरेन्द्र पूर्व भव में कौन था ? विन्ध्याचल की तलहटी में “पूरण" नामक एक समृद्ध गृहस्थ रहता था। एक बार उसके मन में एक संकल्प उठा कि मैं यहाँ जो सुख. भोग कर रहा हूं, वह सब पूर्व-जन्म-कृत पुण्य का फल है, इस जन्म में यदि कुछ ऐसा विशिष्ट तपश्चरण आदि न करूंगा तो अगले जन्म में सुख कैसे प्राप्त होगा? अतः कुछ तप आदि करना चाहिये। इस संकल्प के अनु-सार मन में भावी जीवन के पुण्य फल की कामना का संस्कार लिये वह घर-बार छोड़कर सन्यासी बन गया और 'दानामा' (दानप्रेधान) प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। उसकी विधि के अनुसार वह दो दिन का उपवास करके पारणे के लिये निकलता तो हाथ में एक लकड़ी का चार खानों वाला पात्र रखता। पात्र के पहले खाने में जो भिक्षा प्राप्त होती वह भिखारियों को दे देता, दूसरे खाने में प्राप्त भिक्षा कौआ, कुत्तों आदि को खिला देता। तीसरे खाने में जो कुछ प्राप्त भिक्षा
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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