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________________ ( ११६ ) " ने अपने निश्चयं के अनुसार आँख की पलकें भी बन्द नहीं की । (२) तीक्ष्ण मुँह वाली चींटियाँ चारों ओर से महावीर के शरीर को काटने लगी । . तन छलनी सा हो गया, पर महावीर का मन वज्र सा दृढ़ रहा । (३) मच्छरों का झुण्ड महावीर के शरीर को काट-काट कर रक्त चुसने लगा, ऐसा प्रतिभासित हुआ कि किसी वृक्ष से रस चू रहा है या पर्वत से रक्त के भरने भर रहे हैं । (४) विच्छुओं ने तीव्र दंश - प्रहार किया । (५) नेवलों द्वारा मांस नोचा गया । ( ६ ) भीमकाय विषधर सर्प शरीर से लिपट कर जगह-जगह दंश मारने लगे । (७) तीखे दाँत वाले चूहे काट-काट कर महा योगेश्वर को संत्रास देने लगे । (८) दीमक महावीर के पूरे शरीर पर लिपट गई और भयंकर दंश द्वारा काटने लगी ।
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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