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________________ ( ११५ . ) देवराज संगम की बांत पर क्रुद्ध तो हुए फिर भी संयत स्वर में बोले - " तुम्हारा अहंकार मिथ्या सिद्ध होगा, न कि मेरा कथन ।" -Y "यदि आप हस्तक्षेप न करें तो मैं इसकी परीक्षा कर महावीर को ध्यानच्युत कर सकता हूं - "संगम कुछ प्रावेश में आकर बोला । देवराज चुप रहे और संगम अपनी सम्पूर्ण शक्ति बटोर कर श्रमरण महावीर की अग्नि परीक्षा लेने उसी रात्रि में पेढाल के उद्यान में पहुँच गया । प्र. २७८ म. स्वामी को संगम देव ने प्रथम रात्रि को कितने उपसर्ग दिये थे ? २० ( वोस ) उपसर्ग । उ. प्र. २७६ म. स्वामी को संगम देव कैसे-कैसे उपसर्ग दिये थे ? उ. की आवाज से ( १ ) अचानक सांय-सांय दिशाएँ काँप उठी । भयंकर धूल भरी । आँधी से महावीर के शरीर पर मिट्टी के ढेर जम गये । श्राँख, नाक, कान श्रीर पूरा शरीर धूल से दव गया, पर महावीर
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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