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________________ ( " १०४ ) प्र. २५३. म. स्वामी से उत्तर पाकर गौशालक ने क्या 40 किया था ? 3. प्र. २५४ कूर्मग्राम के निकट गोशालक ने किसको देखा था ? गौशालक हृदय से संशयशील था । कुतूहल और संशय से प्रेरित हो पीछे से उसने उस नन्हें से पौधे को उखाड़कर वहीं डाल दिया । i3. वैश्यायन नामका एक तापस धूप में खड़ा था। उसकी लम्बी-लम्बी जटायें धरती को छू रही थी जैसे बटवृक्ष की शाखाएँ हों । जटा से जूए भूमि पर गिरकर धूप के कारण अकुला रही थी । तपस्वी उन जूत्रों को उठाकर फिर से अपने सिर में डाल रहा था, ताकि कड़ी धूप के कारण वे मर न जांय । प्र. २५५ गौशालक ने वैश्यायन तापस को क्या कहा था ? गौशालक को यह दृश्य बड़ा ही विचित्र सा लगा | उसने श्रमण महावीर को अनेक प्रकार की कठोर तपस्याएँ करते देखा था, पर ऐसा विचित्र तप कभी नहीं देखा, इसलिए गौशालक 3. 3
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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