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________________ ( १०० ) था । रोम-रोम को प्रकम्पित कर देने वाली ठंडी हवाएँ प्रवाहित थीं और एकांत स्थल था । प्र. २३६ म. स्वामी को कटपूतना ने शीतोपसर्ग क्यों दिया था ? भरकर प्रभु उ. १८ वें त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव की अपमानित रानी भव भ्रमण करती हुई कटपूतना राक्षसी हुई थी । प्रभु को ध्यानस्थ देखकर उसके मन में पूर्व जन्म का द्वेष जाग उठा । व्यन्तर कन्या ने विकराल रूप बनाया । बिखरी हुई जटाओं में बर्फ सा शीतल पानी के शरीर पर बरसाने लगी । किन्तु प्रभु महावीर उस भीषण उपसर्ग में भी अपने ध्यान योग में अविचल और शांत रहे । उनके श्रविचल धैर्य, साहस और अभंग समाधिभाव के समक्ष राक्षसी का क्रोध निरस्त हो गया । वह चरणों में विनत हो अपराध के लिए क्षमा माँगने लगी । प्र. २३७ म. स्वामी ने षष्ठम चातुर्मास कहाँ किया था ? भद्रिका नगर में । उ. प्र. २३८ म. स्वामी ने षष्ठम चातुर्मास में कौन-सा तप किया था ?
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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