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________________ (६६) आग बढ़ रही है, भागो ! भागो!" वह भाग खड़ा हुआ। प्रभु ध्यान में स्थिर थे। वे आग और पानी से कब भयभीत होते ! आग की लपटे बढ़ती हुई उनके पैरों के निकट आ गई, पाँव मुलस गये, पर महाश्रमण तब भी अपने समता रस स्थाबी ध्यान में निमग्न रहे । अग्नि ज्वालाएँ समता-सुधा निर्भरणी के समक्ष स्वतः ही शांत हो गई। प्र. २३२ म. स्वामी हलिद दुग से विहार कर कहाँ पधारे थे ? उ. शालिशीर्ष नगर। प्र. २३३ म. स्वामी को शालिशीर्ष नगर में क्या उपसर्ग आया था? उ. शीतोपसर्ग । प्र. २३४ म. स्वामी को शीतोपसर्ग किसने दिया था ? कटपूतना व्यन्तर कन्या ने। प्र. २३५ म. स्वामी को कटपूतना ने शीतोपसर्ग कब दिया था ? प्रभु महावीर शालिशीर्ष नगर के बाहर उद्यान में कायोत्सर्ग करके खड़े थे। माघ का महीना to
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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