SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीप - अर्चना ( कविवर द्यानत जी ) करौ आरती वर्द्धमान की, पावापुर निरवान थान की । ( १ ) राग विना सब जग जन तारे, द्वेप बिना सव करम विदारे । करौ आरती बर्द्धमान की, पावापुर निरवान थान की ॥ ( २ ) शील-धुरधर शिव-तिय-भोगी, मन-वच - काय न कहिये योगी । करौ आरती वर्द्धमान की पावापुर निरवान थान की ।। ( ३ ) रत्नत्रय - निधि परिगह- हारी, ज्ञान- सुधा - भोजन-व्रतधारी । करौ आरती वर्द्धमान की, पावापुर निरवान-थान की || ( ४ ) लोक अलोक व्याप निज माही, सुखमय इंद्रिय सुख-दुख नाही । करौं आरती वर्द्धमान की, पावापुर निरवान-थान की ॥ ( ५ ) पच कल्याणक- पूज्य विरागी, विमल दिगम्बर अवर त्यागी । करौ आरती वर्द्धमान की, पावापुर निरवान थान की ॥ ( ६ ) गुन -मनि- भूषन - भूषितस्वामी, जगत उदास जगत्त्रय स्वामी । करों आरती वर्द्धमान की, पावापुर निरवान-थान की ॥ ( ७ ) कहै कहाँ लौ तुम सव जानो, 'द्यानत' की अभिलाप प्रमानी । करी आरती वर्द्धमान की, पावापुर निरवान-थान की ॥ -*~
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy