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________________ महावीर वन्दना पंडित प्रवर अशाधरसूरि सन्मति - जिनप सरसिज - वदन, सजनिताखिल- कर्मक- मथन । पद्म सरोवर मध्य-गजेन्द्र, पावापुरि महावीर जिनेन्द्र ॥१॥ वीर भवोदधि-पारोत्तार, --- मुक्ति श्री वधु-नगर- विहार । द्विर्द्वादशक - तीर्थ पवित्र, जन्माभिषकृत - निर्मलगात ||२|| वर्धमान नामारव्य - विशाल, मान मान-लक्षण दश ताल ! शत्रु विमथ न विकट भट - वीर, इष्टैश्वर्य घुरी कृत दूर ॥३॥ कुण्डलपुरि सिद्धार्थ भूपाल— तत्पत्नी प्रियकारिणि वाल । तत्कुल नलिन विकाशित हंस, घात पुरो घातिक विध्वस ॥४॥ ज्ञान - दिवाकर लोकालोकम् - निर्जित कर्मा - राति विशोक । वालवे सयम सु - ग्रहीत, मोह महानल मथन विनीत ||५||
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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