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________________ मुनि वैखाखभूति भी मर कर, उनके साथी देव हुयें । तीनो प्राणी निज कर्मों के, फल भोक्त स्वयमेव हुये ।। विश्वनन्दि वैशाखभूति ने, भोगे स्वगिक सौख्य अतीव । नारायण वलभद्र रूप में, जन्मे क्रमशः दोनो जीव ।। त्रिपृष्ठ नारायण १४ पोदनपुर के नृपति प्रजापति, 'मृगा' "जया" ये दो वनिता । क्रमश. इनकी माताएं थी, और प्रजापति पूज्य पिता ।। ६५ वह विशाखनन्दी भी नाना, दुर्गतियो को करके पार । अश्वग्रीव प्रतिनारायण' हो, जन्म अलकापुरी मझार ॥ गिरि विजयार्द्ध दिशा उत्तर मे, ज्वलनवटी था एक नरेश । 'स्वयंप्रभा' उसकी पुत्री थी, रूप और लावण्य विशेष ॥ ६७ श्री त्रिपृष्ठ नारायण' से उस, स्वयंप्रभा का हुआ विवाह । अश्वग्रीव प्रतिनारायण को, हुई ज्वलनजटी से डाह ।। १८ वेचारें उस ज्वलनजटी पर, अश्वग्रीव चढकर आया । मानो उन्मुख देख' शेर को, मृग वेचारा घवराया।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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