SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किन्तु न्याय के साक्ष्य हे, आये नारायण वलभद्र ।। की सहायता ज्वलनजटी की, अश्वग्रीव से छीना चक ।। १०० प्रतिनारायण का वध करके, बने त्रिपृष्ठ त्रिखडाधीश । किन्तु नियम से नरक जायेगे, नारायण यों कहे मुनीश । एक रात्रि गाना सुनते थे, अपने शय्यापाल समीप । सुनते सुनते निद्रा के वश, हुये नितात त्रिपृष्ठ महीप ।। १०२ गायक शय्यापाल किन्तु था, गाने में इतना तल्लीन । राजा के निद्रित होने की, खबर न उनकी हुई स्वाधीन ॥ १०३ स्वर-लहरी से निद्रा टूटी, नही कोध का पारावार । गायक के कानों मे डाली, गर्म गर्म शीशे की धार ॥ १०४ वहारम्भ परिग्रह से या, विषय भोग परिणाम स्वरूप । आर्त-रौद्र ध्यानो से मर कर, गया सातवे नर्क कुभूप ॥ त्रिपृष्ठ वारायण का जीव क्रूरसिंह की पर्याय में १०५ कई सागर पर्यन्तः नर्क के, दुःख सहे उसने घनघोर। निकल वहाँ से हुआ शेर, वह हिंसक पशु गगा की ओर।।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy