SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८. ] महावीर चरित्र । : हुई हैं; और जो समस्त सुख-संपत्तिका स्थान है ऐसे उत्तम विमानको पाकर वह विश्वनंदीका जीव अत्यंत तृप्त हुआ ॥ ९३ ॥ लक्ष्मणाके इस कृपण पुत्रने अनुपम जैन को पाकर भी भाकाशमें प्रचुर वैभवके धारक किसी विद्याधरोंके स्वामीको देखकर भोगोंकी इच्छासे खोटा निदान बांधा जिससे कि वह तप करके समीचीनः व्रतोंके पालन और कायक्लेशके प्रभावसे दशमें स्वर्ग में पहुंचा ॥८४॥ इस प्रकार अशग कवि कृत वर्द्धमान चरित्र विश्वनंदिनिदान नामका चतुर्थ सर्ग समाप्त हुआ । IBCHEM पांचवां सर्ग | जम्बूद्वीप में भारत नामका एक क्षेत्र है । उसमें विजयार्ध नामका एक पर्वत है । जिसकी अत्यंत उन्नत अनेक शिखरों की किरणोंसे सम्पूर्ण भाकाशमंडल सफेद हो जाती है ॥ १ ॥ जिस पहाड़के ऊपर निर्मल स्फटिककी शिखरों की टोंकपर खड़ी हुई अपनी बहुओंको देख कर विद्यावर लोक समानता के कारण भ्रममें पड़ कर पहले देवांगनाओंकी तरफ जाते हैं; किंतु उनके हंसते ही झट लौट आते हैं ||२|| जिसके आसपासके समीपवर्ती छोटे २ पर्वतों पर प्रकाशित होनेवाली मणिओंकी प्रभासे सिंहके बच्चे कितनी ही वार ठगे गये हैं- वे अपने मनमें- गुहाके द्वारकी शंका करने लगते हैं:- वे । समझने लगते हैं. कि यहां गुहाका द्वार है परंतु बुसते ही वंचित हो जाते हैं। इसीलिये वे सच्ची गुहाओं में भी बहुत देर तक नहीं घुसने - ॥ ३ ॥ शिखरोंमें लगी हुई पद्मरागमणिओंकी किरणोंसे जब आकाश. • लाल पड़ जाता है तब नित्य अनंत तेजका धारक वह मनोज्ञ-पर्वत
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy