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________________ २४२] महावीर चरित्र ! . . . --स्वच्छ वह श्रीमान् राजा झंडकी तरह आयतिमान् (रानाकी पक्षों : ५ प्रभाववान् यो भाग्यवान और झंडाके पक्षमें लम्बा.) था। उसने ला: कर पृथ्वीका उद्धार कर दिया था (झंडाकी पक्षों जो उठाकर जमीन... पर गाढ़ दिया गया है। जिसने परंपराके द्वारा प्रकाशित होनेवाले.. उन्नत ज्ञातिवंश (कुर, दूसरे पक्षमें बांस) को निर्यानरूसें अलकन कर दिया था ॥ २१ ॥ अपने (ग्यिाओंके) फलसे समाप्त लोकको : संयोजित करनेवाले उम.मिर्मल रानाको पाकर रानविद्याय प्रशाशित होने लगी थीं। ऐसे समयको जब कि मेवोंका विनाश हो चुका. . है पाकर समस्त दिशायें क्या प्रसादयुक्त कातिको नहीं...रण । करती हैं । ॥ २२ ॥ पृथ्वीपर अतुल प्रतापको धारण करते इस गुणी राजामें एक ही बड़ामारी दोप था कि वलसें वक्षःस्थलार रही : हुई मी उसकी प्रियतमा लक्ष्मीको इष्टजन निरंतर उनके सामने ही: भोगते थे ॥ २३ ॥ . इस नरपतिकी प्रियकारिणी नामकी महिषी-पट्टरानी थी जो ... कि लोकमें अद्वितीय रत्न थी। तथा विवाह समयमें जिसको देख कर इन्द्र भी यह मानने लगा कि ये मेरे हमार मंत्र आन कृतार्थ हुए हैं ॥ २४ ॥ अपूर्व मनुष्य उसको देखकर अर्थ निश्चय नहीं ... कर सकता था-पह नहीं जान सकता था कि यह कौन हैं। क्योंकि : • वह उसको देखते ही विस्मय-आश्चर्यके वशमें पड़कर ऐसा मानने लगता था-संशयमें पड़कर विचार करने लगता था कि क्या यह भूतिमती कौमुदी है ? पर यह ठीक नहीं मालूम पड़ता क्योंकि . यह दिनमें भी रमणीय मालुम पड़ती है। किंतु कौमुदी तो ऐसी : . - नहीं होती। तो क्या देवांगना है ? पर यह भी ठीक नहीं, क्योंकि
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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