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________________ पहला सर्ग । [ ५ या कुत्सित शब्दों का प्रयोग हो जाय तो रसिक गण उसकी तरफ ध्यान न दें ॥ ६ ॥ कथाका प्रारम्भ - जम्बू वृक्षके सुंदर चिन्हसे चिन्हित जम्बूद्वीपके दक्षिण भागमें भारत नामक एक क्षेत्र है। जहां पर भव्यजीवरूपी धान्य जिनधर्मरूप अमृनकी वर्षा सिंचनसे निरंतर आह्लादित रहा करते हैं ॥ ७ ॥ उस क्षेत्र में अपनी कान्तिके द्वारा अन्य समस्त देशोंको जीतनेवाला पूर्व देश है, जहांपर उत्पन्न होनेके लिये स्वर्गमें अवतार ग्रहण करनेवाले देश भी स्पृहा करते हैं ॥ ८ ॥ वह देश असंख्य रत्नाकरोंसे (रत्नोंक ढेरोंसे) और रमणीय दंतिवनों (कनली वनों) से अलंकृत है । और विना जोते तथा विना वृष्टि जलक प्रतिबन्धके ही पकनेवाले धान्यको सदा धारण करनेवाले खेतोंसे शोभित रहता है || ९ || उस देश समस्त ग्राम और शहर अपने स्वामीके लिये चितामणिके समान मालूम होते हैं। क्योंकि उनके बाहरके प्रान्त भाग पौड़ा - ईखके खेतों से व्याप्त रहा करते हैं और साटी चावलोंक खेत बंत्रा या नहरके जलसे पूर्ण रहते हैं । तथो स्वयं भी पार्नकी वल्ली (वेल) और पके हुए सुपारी के वृक्षांक उद्यानसे रम्य हैं। जिनमें गौ आदि पशु, धन और अनेक प्रकारकी विभूतिसे युक्त, जिनके यहां हजारों कुंभे धान्य रहता है ऐसे कुटुम्बीगण निवास करते हैं ॥१०-११ ॥ वहांकी नदियां अमृतके सारकी समताको धारण करनेवाले और नील कमलोंसे सुगन्धित जलको धारण करनेवाली हैं" ॥ १२ ॥ . १ एक परिमाणका नाम है। २ इस श्लोकंकं पूर्वार्धका अर्थ हमारी समझ नहीं आया, इसलिये उसका अर्थ यहां लिखा नहीं है।
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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